लाठी में गुण बहुत है...............................................हाथ मह लीजै लाठी।
भावार्थ- गिरिधर कविराय द्वारा लिखित उपर्युक्त कुंडलिया में कविराम ने साठी के गुणों की और संकेत करते हुए उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। कवि कहते हैं कि लाटी में बहुत गुण है इसीलिए इसे हमेशा साथ में रखना चाहिए। लाठी अनेक प्रकार से अनेक स्थितियों में हमारी सहायता करती है। कहाँ गड्ढा आ जाए, तो लाढ़ी का सहारा हमें संतुलित रखता है, कहीं नहीं आ आए तो लाठी का प्रयोग करके न केवल उसकी गहराई का पता लगाया जा सकता है बल्कि लाठी के सहारे उसे पार भी किया जा सकता है। यदि मार्ग में किसी कुत्ते से सामना हो जाए, तो लाठी उससे भी हमारी रक्षा करती है, क्योंकि कुत्ते के झपटने पर लाठी से अपने आप को सुरक्षित रखा जा सकता है। यदि कभी किसी दुश्मन से सामना हो जाए, तो भी लाठी हमारे बड़े काम आती है। लाठी के सहारे दुश्मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। गिरिधर कविराय कहते हैं कि है धूल भरे मार्ग में यात्रा करने वाले यात्री, मेरी बात ध्यान से सुनो- सब हथियारों को छोड़कर हाथ में लाठी लेकर यात्रा करनी चाहिए।
कमरी धोरे दाम की...............................................बड़ी मर्यादा कमरी।
भावार्थ- गिरिधर कविराय द्वारा रचित उपर्युक्त कुंडलिया में कविराय काली कमरी (साधारण कंबल) की उपयोगिता पर प्रकाश डाल रहे हैं। कविराय कहते हैं कि काली कमरी अत्यंत थोड़े मूल्य में प्राप्त हो जाती है। इस सस्ती कमरी के अनेक लाभ हैं। यह हमारे बहुत प्रकार से काम आती है। खासा (उत्तम प्रकार का कपड़ा), मलमल और वाफ्ता (महँगा कपड़ा) जैसे कीमती कपड़ों की धूल और पानी से रक्षा करने में कमरी का बहुत हाथ है अर्थात् 'कीमती कपड़ों को भी कमरी में लपेटकर उनकी हिफाजत की जा सकती है। उन कपड़ों की गठरी बनाई जा सकती है। यही नहीं रात पड़ने पर कमरी को झाड़कर बिछाया भी जा सकता है तथा उस पर आराम से सोया भी जा सकता है। गिरिधर कविराय कहते हैं कि इतनी उपयोगी कमरी बहुत कम दामों में उपलब्ध हो जाती है अतः कमरी को सदैव अपने साथ रखना चाहिए।
गुन के गाहक सहस नर...............................................सहस नर गाहक गुन के।
भावार्थ-उपर्युक्त कुंडलिया के रचयिता गिरिधर कविराय हैं। वे कहते हैं संसार में सर्वत्र गुणी व्यक्ति का आदर और सम्मान होता है। गुणों के प्रशंसक हजारों होते हैं, पर ऐसे व्यक्ति को कोई नहीं पूछता जिसमें कोई गुण न हों। इसीलिए व्यक्ति को अपने में गुणों का विकास करना चाहिए। कवि ने कौए और कोयल का उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट की है। कौए और कोयल दोनों का रंग काला होता है, परंतु कोई भी कौए को उसकी कर्कश आवाज की वजह से पसंद नहीं करता। कोयल की मधुर आवाज सभी को अच्छी लगती है। कोयल की मधुर वाणी को सभी सुनना चाहते हैं, पर कौए की काँव काँव किसी को नहीं भाती। गिरिधर कविराय कहते हैं कि समाज में केवल गुणों की सराहना की जाती है, गुणों का आदर किया जाता है, रंग-रूप आदि का नहीं बिना गुणों के किसी का सम्मान नहीं होता। गुणी व्यक्ति को चाहने वाले हजारों होते हैं।
साँई सब संसार में...............................................यार बिरला कोई साँई॥
रहिए लटपट काटि दिन...............................................तऊ छाया में रहिए॥
भावार्थ-गिरिधर कविराय इस कुंडलिया में यह संकेत कर रहे हैं कि चाहे किसी भी स्थिति में जीवन व्यतीत कर लो परंतु उस पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए जो पतला या कमजोर हो, क्योंकि ऐसा पेड़ कभी-न-कभी अवश्य धोखा देगा। जब भी तेज़ हवा चलेगी, आँधी आएगी तो पतला पेड़ जड़ से उखड़कर गिर जाएगा इसलिए हमें किसी मोटे पेड़ का सहारा लेना चाहिए। मोटा पेड़ आँधी के प्रहार को सहन कर लेगा तथा कभी धोखा नहीं देगा। आँधी आने पर मोटे पेड़ के पत्ते भले ही झड़ जाएँ, परंतु उसका तना और डालियाँ सुरक्षित रहेंगी। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह मजबूत पेड़ की छाया ग्रहण करे।
विशेष-उपर्युक्त कुंडलिया द्वारा कविराय पेड़ के माध्यम से यह संकेत कर रहे हैं कि हमें समर्थ एवं बलवान व्यक्ति का सहारा लेना चाहिए निर्बल का नहीं। निर्बल व्यक्ति न अपनी सुरक्षा कर सकता है और न दूसरे की जबकि सबल व्यक्ति स्वयं भी सुरक्षित रहता है और अपने पास आए व्यक्ति को भी सुरक्षित रख सकता है।
पानी बाढ़ै नाव में...............................................राखिए अपना पानी॥
भावार्थ- गिरिधर कविराय प्रस्तुत कुंडलिया में परोपकार का महत्त्व स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यदि नाव में पानी भर जाए और घर में बहुत सा धन आ जाए, तो उसे दोनों हाथों से बाहर निकालना चाहिए। नाव में पानी भर जाए उस पानी को दोनों हाथों से यदि निकाला नहीं जाएगा, तो नाव डूब जाएगी, इसी प्रकार घर में बहुत सा धन आने पर उसे परोपकार के कार्यों में लगाना चाहिए तथा जी खोलकर दूसरों की सहायता और दान-पुण्य करना चाहिए। यही बुद्धिमानी का काम है। हमें प्रभु के नाम का स्मरण भी करना चाहिए और परोपकार के लिए यदि अपने जीवन का बलिदान भी देना पड़े तो दे देना चाहिए। गिरिधर कविराय कहते हैं कि बड़े-बुजुर्गों ने हमें यही सीख दी है कि हमें हमेशा अच्छे ढंग से जीवनयापन करना चाहिए, सही मार्ग पर चलते हुए अपने सम्मान को बनाए रखना चाहिए। केवल सही मार्ग पर चलने से ही अपने सम्मान की रक्षा की जा सकती है।
राजा के दरबार में...............................................बहुरि अनखैहैं राजा॥
भावार्थ-गिरिधर कविराय कहते हैं कि राजा के दरबार में अवसर पाकर जाना चाहिए। हमें एक बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हमें अपनी हैसियत देखकर ही स्थान ग्रहण करना चाहिए और कभी किसी ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जो हमारे स्तर के अनुकूल न हो, क्योंकि ऐसे स्थान पर बैठने से हमें कोई भी वहाँ से उठा सकता है। कवि कहता है कि ऐसी स्थिति आने पर हमें दुप ही रहना चाहिए। हमें बोलते समय भी संयम बरतना चाहिए। अनावश्यक रूप से कभी जोर-जोर से नहीं हँसना चाहिए। जब हमसे कोई बात पूछी जाए तभी उसका उत्तर देना चाहिए, क्योंकि यही व्यवहार कुशलता है। हमें अपने प्रत्येक कार्य समय पर करने चाहिए। हमें अधिक उतावला नहीं होना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक कार्य उपयुक्त समय आने पर ही होता है। कवि का संकेत है कि हमें राज दरबार के नियमों का पालन करना चाहिए।