दो कलाकार Workbook Solution, do kalakar questions answers, do kalakar complete workbook answers, Sahitya Sagar workbook answers shout to learn, दो कलाकार, kahanikar ka Parichay, Kahani ka saransh, Kahani ka uddeshy, Kahani ke mukhya Bindu, Charitra chitran
(i) 'अरे, यह क्या ? इसमें तो सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान सब एक दूसरे पर चढ़ रहे हैं। मानो सबकी खिचड़ी पकाकर रख दी हो। क्या घनचक्कर बनाया है ?'
(क) 'अरे, यह क्या ?' - वाक्य का वक्ता और श्रोता कौन है ? उपर्युक्त कथन का संदर्भ सपष्ट कीजिए।
उत्तर : वाक्य का वक्ता अरुणा है तथा श्रोता चित्रा है। चित्रा सो रही अरुणा को उठाकर अपने द्वारा बनाया गया चित्र दिखा रही है। चित्र देखकर अरुणा को कुछ समझ में नहीं आया कि चित्र में क्या बनाया गया है।
(ख) चित्र को चारों ओर घुमाते हुए वक्ता ने श्रोता को चित्रों के संबंध में क्या सुझाव दिया था ?
उत्तर : चित्र को चारों ओर घुमाते हुए अरुणा ने चित्रा को सुझाव दिया कि जब भी वह चित्र बनाए, तो उस पर नाम लिख दिया करे, जिससे कि गलतफहमी न हो। तस्वीर को ध्यान से देखते हुए अरुणा बोली कि उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि चौरासी लाख योनियों में से आखिर यह किस जीव की तस्वीर है ?
(ग) 'खिचड़ी पकाकर' और 'घनचक्कर' शब्दों का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि इनका प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है और क्यों ?
उत्तर : 'खिचड़ी पकाकर' का अर्थ है- कुछ भी स्पष्ट न होना अथवा सब कुछ मिला हुआ होना। 'घनचक्कर' शब्द का अर्थ है-चक्कर में डालने वाला। अर्थात् चित्रा द्वारा बनाए गए चित्र में सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर, मकान आदि सब एक-दूसरे से मिले हुए थे, ऐसे लगता था कि खिचड़ी पकाई गई हो तथा यह तस्वीर चक्कर में डालने वाली थी। इन शब्दों का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि चित्रा द्वारा बनाया गया चित्र 'कन्फ्यूजन' का प्रतीक था ।
(घ) श्रोता ने अपने चित्र को किसका प्रतीक बताया? वक्ता ने उसकी खिल्ली किस प्रकार उड़ाई ?
उत्तर : चित्रा ने अपने चित्र को आज की दुनिया में कन्फ्यूजन का प्रतीक बताया परंतु अरुणा ने चित्र को चित्रा की बेवकूफी का प्रतीक बताया।
(ii) 'पर सच कहती हूँ, मुझे तो सारी कला इतनी निरर्थक लगती है, इतनी बेमतलब लगती है कि बता नहीं सकती।'
(क) वक्ता को किसकी कला निरर्थक लगती थी और क्यों ?
उत्तर : अरुणा को चित्रा की कला निरर्थक लगती थी क्योंकि उसके अनुसार ऐसी कला किस काम की, जो आदमी को आदमी न रहने दे। ऐसी कला निरर्थक होती है।
(ख) वक्ता ने उसकी कला पर व्यंग्य करते हुए क्या कहा और उसे क्या सलाह दी ?
उत्तर : वक्ता अर्थात् अरुणा ने चित्रा से कहा कि तुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं, तू बस चौबीस घंटे अपने रंग और तूलिकाओं में डूबी रहती है। दुनिया में कितनी बड़ी घटना घट जाए, पर यदि उसमें तेरे चित्र के लिए आइडिया नहीं, तो तेरे लिए वह घटना कोई महत्त्व नहीं रखती। हर जगह तू अपने चित्रों के लिए मॉडल खोजती है। तेरे पास सामर्थ्य है, साधन हैं, तू कागज पर इन निर्जीव चित्रों को बनाने की बजाय दो-चार की जिंदगी क्यों नहीं बना देती।
(ग) वक्ता की बात पर श्रोता ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की और क्यों ?
उत्तर: अरुणा की बात सुनकर चित्रा बोली कि मानव सेवा का काम तो उसके लिए छोड़ दिया है। जब वह विदेश चली जाएगी तो जल्दी से सारी दुनिया का कल्याण करने के लिए झंडा लेकर निकल पड़ना। चित्रा जानती थी कि अरुणा के जीवन का उद्देश्य समाज के जरूरतमंद लोगों की सहायता करके उनके जीवन को बेहतर बनाना था।
(घ) आपके अनुसार सच्ची कला की क्या पहचान है ?
उत्तर: हमारे अनुसार जो कला जीवन को महत्त्व न दे, वह कला नहीं है। कला और कलाकार वही सार्थक है, जो अरुणा की तरह संवेदना से भरा हो। चित्रा जैसा भौतिकवादी कलाकार मानवता के लिए व्यर्थ है।
(iii) 'वह काम तेरे लिए छोड़ दिया। मैं चली जाऊँगी तो जल्दी से सारी दुनिया का कल्याण करने के लिए झंडा लेकर निकल पड़ना।'
(क) वक्ता और श्रोता का परिचय दीजिए।
उत्तर: वक्ता चित्रा है। वह एक धनी पिता की इकलौती बेटी है। चित्र बनाना ही उसका एकमात्र शौक है। उसमें भावुकता और संवेदनशीलता नाममात्र की है। श्रोता अरुणा है। वह चित्रा की सहेली और सहपाठिन है। उसके जीवन का उद्देश्य समाज के निर्धन, असहाय और शोषित वर्ग की सहायता करके उनके जीवन को बेहतर बनाना है।
(ख) 'वह काम' से वक्ता का संकेत किस ओर है ? वक्ता और श्रोता में अपने-अपने कामों को लेकर किस प्रकार की नोंक-झोंक चलती रहती है ?
उत्तर : 'वह काम' से चित्रा का संकेत अरुणा द्वारा समाज के निर्धन, असहाय और शोषित वर्ग की सहायता करना है। चित्रा का एकमात्र शौक चित्र बनाना है। उसमें भावुकता और संवेदनशीलता नाममात्र की थी। उसे अपनी सहपाठिन अरुणा का समाज-सेवा के कार्यों में व्यस्त रहना केवल ढकोसला लगते हैं।
(ग) वक्ता कहाँ जा रही थी और क्यों ?
उत्तर: चित्रा विदेश जा रही थी। वह चित्रकला के संबंध में विदेश जा रही थी।
(घ) 'वक्ता और श्रोता के जीवन उद्देश्यों में अंतर होते हुए भी उनमें घनिष्ट मित्रता थी' स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : अरुणा और चित्रा के जीवन उद्देश्यों और विचारों में भतभेद होते हुए भी वे एक-दूसरे से प्यार करती थीं। सारा हॉस्टल इन दोनों की मित्रता को ईर्ष्या की नज़र से देखता था। अरुणा अक्सर चित्रा को डाँट दिया करती थी, पर चित्रा ने कभी इस बात का बुरा नहीं माना। हॉस्टल छोड़ते समय उसकी आँसू-भरी अरुणा को ही ढूँढ़ रही थीं।
(iv) "कहा तो मेरे "। अरुणा ने हँसते हुए कहा।" अरे बता न मुझे ही बेवकूफ बनाने चली है।"
(क) 'कहा तो मेरे' - वाक्य का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: तीन वर्ष बाद जब चित्रा भारत लौटी, तो अखबारों में उसकी कला पर अनेक लेख छपे। दिल्ली में उसके चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। उस प्रदर्शनी में चित्रा की भेंट अरुणा से हो गई। उसके साथ दो प्यारे से बच्चे-दस साल का लड़का और कोई आठ साल की लड़की देखकर चित्रा ने अरुणा से पूछा कि ये बच्चे किसके हैं, तब अरुणा ने कहा कि ये मेरे बच्चे हैं।
(ख) 'मुझे ही बेवकूफ़ बनाने चली है'- वाक्य का संदर्भ स्पष्ट करते हुए बताइए कि वक्ता को श्रोता की किस बात का विश्वास नहीं हुआ और क्यों ?
उत्तर: चित्रा के पूछने पर जब अरुणा ने कहा कि वे दोनों बच्चे उसके अपने हैं, तो चित्रा को अरुणा की बात पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उसे पता था कि समाज सेवा में अपना सर्वस्व लगा देने वाली अरुणा कभी भी पारिवारिक जीवन नहीं निभा सकती।
(ग) अरुणा की कौन-सी बात सुनकर चित्रा की आँखें फैली की फैली रह गई ?
उत्तर: अरुणा के साथ आए बच्चों के बारे में जब चित्रा ने वास्तविकता बताने के लिए कहा तब अरुणा ने बताया कि ये दोनों बच्चे उस भिखारिन के हैं, जिसकी मृत्यु के बाद उसने उसके दोनों अबोध बच्चों को अपना लिया था। यह सुनकर चित्रा आश्चर्यचकित रह गई थी।
(घ) चित्रा को किस चित्र से प्रसिद्धि मिली थी? चित्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: चित्रा को भिखारिन और दो अनाथ बच्चों के चित्र से प्रसिद्धि मिली थी। अनेक प्रतियोगिताओं में उसका 'अनाथ' शीर्षक वाला चित्र प्रथम पुरस्कार पा चुका था। विदेश जाने से पहले चित्रा अपने गुरुजी से आशीर्वाद लेकर लौट रही थी, तो मार्ग में उसने देखा कि एक पेड़ के नीचे एक भिखारिन मरी पड़ी है और उसके दोनों बच्चे उसके शरीर से चिपककर बुरी तरह से रो रहे हैं। उस दृश्य से द्रवित होकर उसने उनका एक रफ-सा स्केच बना डाला था। विदेश में जाकर उसने एक चित्र में उसी स्केच के आधार पर भिखारिन और उसके दो बच्चों को चित्रित किया था, जिससे उसे प्रसिद्धि मिली थी।