धर्मराज यह भूमि किसी की...................................................आशंकाओं से जीवन।
व्याख्या - राष्ट्रकावी रामधारी सिंह "दिनकर" की उपर्रयुक्त पंक्तियों में भ्षिम पितामह धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहते हैं के हैं ये हे युधिष्ठिर यह यह धरती किसी की ख़ैर दिव्य दासी नहीं है । यह तो यहाँ जन्म लेने वाले सभी लोगों की ये है। इस पृथ्वी पर सभी लोगों का जन्म समान रूप से हुआ है। भाव यह है कि इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले सभी लोग सामान है उन सभी को प्रकृति के तख्तों समान रूप से मिलने चाहिए सभी को मुख्य रूप से प्रकाशन खुली हवा चाहिए इस पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी लोगों का यह अधिकार है कि उनका विकास शो उनके विकास मैं किसी प्रकार की बाधा नायब उन्हें किसी प्रकार की चिंता आशंका यह भय का सामना करना पड़ा क्योंकि यह धरती आकाश दूतावास सबके लिए हैं और उन पर सभी का समान रूप से अधिकार है यह।
लेकिन विघ्न उनके अभी......................................................शांति कहाँ इस भव को?
व्याख्या - ग्रीष्म ठिकाना धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहते हैं कि यद्द्यपि धरती, आकाश, धूप, हवा आदी पर सबका समान रूप से अधिकार है, सभी को बाधा रहित विकास करने का अधिकार है तथापि अभी इस मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं। मानवता के मार्ग में अनेक प्रकाश की समस्याएँ, कठिनाइयाँ और बाधाएँ है इसलिए मनुष्य का समुचित विकास नहीं हो पाया है। कवि कहते हैं कि जब तक मनुष्यों के न्याय के अनुसार अधिकारों को स्वीकार नहीं किया जाता जब तक उन्हें वे अधिकार नहीं मिल जाते तब तक समाज में शांति स्थापित नहीं हो सकती। समाज में हमारे में शांति की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्यों के न्यायोचित अधिकार उन्हें दिए जाएँ।
जब तक मनुज-मनुज का यह................................................और भोग संचय में।
व्याख्या- रामधारी सिंह 'दिनकर' कहते हैं कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहा कि जब तक सभी मनुष्यों को समान रूप से प्रकृति के सभी साधन उपलब्ध नहीं होंगे, जब तक समानता के आधार पर सबको समान अधिकार नहीं दिए जाएँगे तब तक संघर्ष की समाप्ति नहीं हो सकती। जब सभी मनुष्यों को सुख प्राप्त करने के समान अधिकार मिल जाएँगे, तो कोलाहल स्वतः समाप्त हो जाएगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि स्वार्थ से ग्रसित लोग इस बात को भूलकर केवल अपने लिए धन संचय में लगे हुए हैं जिससे संदेह तथा भय का वातावरण बना रहता है।
प्रभु के दिए हुए सुख.........................................................स्वर्ग बना सकते है
व्याख्या - इस पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में सुख के इतने साधन उपलब्ध हैं कि उससे सभी मनुष्यों की सभी आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकती हैं। यदि स्वार्थी लोग अपने लिए संचय करने का भाव छोड़ दें तो पृथ्वी के साधनों का उपयोग सभी मनुष्य कर सकते हैं और सबके उपभोग करने के बाद भी वे बच जाएँगे। भाव यह है कि धरती पर किसी भी चीज की कमी नहीं है। इस धरती पर भोग सामग्री का जितना विस्तार है. अभी उसका उपभोग करने वाले उतने मनुष्य नहीं है। यदि कुछ लोग केवल अपने लिए संचय करने की दुष्प्रवृत्ति का त्याग कर दें तो सबके भोगने के बाद भी खाद्य सामग्री तथा अन्य पदार्थ बचे रह जाएँगे। ऐसी स्थिति होने पर सब लोग संतुष्ट हो सकते हैं तथा समान रूप से सुख पा सकते हैं। यदि ऐसा हो गया तो पलभर में इस धरती को स्वर्ग के समान बनाया जा सकता है अर्थात् फिर इस धरती पर वे सब सुख होंगे जो स्वर्ग में उपलब्ध होते हैं।