Maatr Mandir Kee Orr [मातृ मंदिर की] - ICSE Sahitya Sagar Q&A

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Amit Kumar
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अवतरणों पर आधारित प्रश्न

(i) व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेश, 
     चलूँ, उसको बहलाऊँ आज। 
     बताकर अपना सुख-दुख उसे 
     हृदय का भार हटाऊँ आज । 
     चलूँ माँ के पद पंकज पकड़ 
     नयन जल से नहलाऊँ आज। 
     मातृ-मंदिर में मैंने कहा...... 
     चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ।।

(क) कविता की रचयित्री कौन हैं? ये पंक्तियाँ उनकी किस कविता से ली गई हैं? उसके हृदय के व्यथित होने का क्या कारण है ?

उत्तर: कविता की रचयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। ये पंक्तियाँ उनकी 'मातृ मंदिर की ओर' कविता से ली गई हैं। उनका हृदय इसलिए व्यथित है क्योंकि भारत माँ पराधीन है। कवयित्री ने भारत की पराधीनता को लेकर अपने मन की पीड़ा अभिव्यक्त की है।

(ख) कवयित्री ने अपने मन को बहलाने का कौन-सा उपाय ढूँढ़ा ?

उत्तर: कवयित्री कहती है कि उसके हृदय में पीड़ा है। वह मातृ मंदिर में जाकर भारत माँ को अपना सुख-दुख सुनाकर अपने चित्त को हल्का करना चाहती है।

(ग) 'चलूँ माँ के पद-पंकज पकड़ नयन जल से नहलाऊँ आज' -- पंक्ति का भावार्थ लिखिए।

उत्तर: कवयित्री की इच्छा है कि वह मातृभूमि जैसे पवित्र मंदिर में माँ के कमल के समान चरणों को अपने अश्रू जल से धोए और उन चरणों को पकड़कर अपना दर्द रो-रोकर सुनाए। वह मातृ मंदिर के दर्शन करके अपने मन को हल्का करना चाहती है।

(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवयित्री क्या प्रेरणा दे रही है ?

उत्तर: कवयित्री भारत माँ की पराधीनता के कारण दुखी है। अनेक बलिदानों के बाद भी भारत को पराधीनता से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। इसलिए वह भारत माता को अपने सुख-दुख का साझीदार बनाना चाहती है तथा उसके चरणों को पकड़कर आँसू बहाकर अपनी पीड़ा व्यक्त करना चाहती है।

(ii) किंतु यह हुआ अचानक ध्यान 
      दीन हूँ, छोटी हूँ, अज्ञान।
      मातृ-मंदिर का दुर्गम मार्ग 
      तुम्हीं बतला दो हे भगवान ।। 
      मार्ग के बाधक पहरेदार 
      सुना है ऊँचे-से सोपान। 
      फिसलते हैं ये दुर्बल पैर
      चढ़ा दो मुझको हे भगवान।

(क) कवयित्री को अचानक क्या ध्यान आया ? उसने भगवान से क्या प्रार्थना की ?

उत्तर: कवयित्री की इच्छा है कि वह भारत माता के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करे, उन्हें अपना दुख-दर्द सुनाकर अपने मन को हल्का करे, परंतु तभी उसे अपनी दुर्बलता तथा छोटेपन का अहसास होता है। वह सोचती है कि मैं दीन, छोटी तथा ज्ञान से रहित हूँ, साथ ही भारत माता के मंदिर तक पहुँचने का मार्ग भी अत्यंत दुर्गम है। वहाँ आसानी से पहुँचा नहीं जा सकता, इसलिए कवयित्री भगवान से प्रार्थना करती है कि वे उसे वहाँ तक पहुँचाने का मार्ग बताएँ।

(ख) 'मार्ग के बाधक पहरेदार' से कवयित्री का क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवयित्री मातृ मंदिर में प्रवेश चाहती है, परंतु वहाँ तक पहुँचने के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ हैं। मार्ग में अनेक पहरेदार (विदेशी शासक) हैं, जो हर समय पहरा देते रहते हैं, जिसके कारण वहाँ पहुँचना कठिन है।

(ग) कवयित्री ने मातृ मंदिर के मार्ग को दुर्गम क्यों कहा है? वह भगवान से क्या प्रार्थना करती है ?

उत्तर: कवयित्री ने मातृ मंदिर के मार्ग को दुर्गम इसलिए कहा है क्योंकि मार्ग में विदेशी शासक रूपी अनेक पहरेदार हैं, जो हर समय बाधा उपस्थित करते हैं, इसलिए वहाँ पहुँचना कठिन है। कवयित्री कहती है कि उसके दुर्बल पैर फिसल रहे हैं। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे भगवान! अब केवल तुम्हीं मेरी सहायता कर सकते हो। मुझे मातृ मंदिर की ऊँची-ऊँची सीढ़ियों पर चढ़ने की शक्ति प्रदान करो।

(घ) शब्दार्थ लिखिए -- 

उत्तर : दीन -- गरीब
दुर्गम -- जहाँ पहुँचना कठिन हो
बाधक -- बाधा डालने वाला, रोकने वाला
सोपान -- सीढ़ी

(iii) अहा! वे जगमग-जगमग जगी 
       ज्योतियाँ दीख रही हैं वहाँ। 
       शीघ्रता करो, वाद्य बज उठे 
       भला मैं कैसे जाऊँ वहाँ ? 
       सुनाई पड़ता है कल-गान 
       मिला दूँ मैं भी अपनी तान। 
       शीघ्रता करो मुझे ले चलो, 
       मातृ मंदिर में हे भगवान ।।

(क) 'ज्योतियाँ दीख रही हैं वहाँ' -- पंक्ति द्वारा कवयित्री का संकेत किस ओर है ?

उत्तर: कवयित्री का संकेत स्वतंत्रता की जगमग करती हुई ज्योतियों से है। कवयित्री कहती हैं कि यद्यपि भारत माता का मंदिर दूर है, पर इतना भी दूर नहीं है कि वहाँ का जगमगाता दृश्य दिखाई न दे। कवयित्री को स्वतंत्रता की जगमग करती हुई ज्योतियाँ दिखाई दे रही है।

(ख) 'वाद्य बज उठे' से कवयित्री का क्या अभिप्राय है ? उनकी ध्वनि सुनकर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है ?

उत्तर: कवयित्री को स्वतंत्रता की जगमग करती हुई ज्योतियाँ तथा वहाँ बजने वाले वाद्य भी सुनाई दे रहे हैं। वह मातृ मंदिर से आने वाले दिव्य और पवित्र संगीत को भी सुनती है इसलिए वह वहाँ जल्दी-से-जल्दी पहुँचना चाहती है।

(ग) 'कल-गान' से कवयित्री का क्या आशय है? इस संदर्भ में कवयित्री अपनी क्या अभिलाषा व्यक्त करती है ?

उत्तर : 'कल-गान' से कवयित्री का तात्पर्य सुंदर, दिव्य और पवित्र संगीत से है। कवयित्री वहाँ जल्दी-से-जल्दी पहुँचकर वहाँ होने वाले गायन में अपनी तान भी मिला देना चाहती है। वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि वे शीघ्रता से उसे मातृ मंदिर तक पहुँचा दे।

(घ) उपर्युक्त पंक्तियों का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवयित्री को एहसास हो रहा है कि भारत की स्वतंत्रता अब दूर नहीं है। इसलिए वह कहती है कि वहाँ का जगमगाता दृश्य उसे दिखाई दे रहा है, अर्थात् स्वाधीनता प्राप्ति होने में अधिक देर नहीं है, इसलिए वह चाहती है कि भगवान उसे जल्दी-से-अपने लक्ष्य तक पहुँचा दे, जिससे कि वह भी स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना योगदान दे सके।

(iv) चलूँ मैं जल्दी से बढ़-चलूँ।
       देख लूँ माँ की प्यारी मूर्ति।
       अहा! वह मीठी-सी मुसकान 
       जगा जाती है, न्यारी स्फूर्ति ।। 
       उसे भी आती होगी याद ? 
       उसे, हाँ आती होगी याद।
       नहीं तो रूदूँगी मैं आज
       सुनाऊँगी उसको फरियाद।

(क) उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवयित्री की क्या इच्छा है ?

उत्तर: कवयित्री को लगता है कि मातृ-मंदिर में जगमगाते दीपकों की लौ अपना प्रकाश बिखेर रही है। वह मातृ मंदिर से आने वाले दिव्य एवं पवित्र संगीत को भी सुनती है, इसलिए वह जल्दी-से-जल्दी मातृभूमि के चरणों में पहुँचकर भारत माँ की प्यारी मूर्ति को देखना चाहती है।

(ख) 'मीठी-सी मुसकान' का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मातृभूमि की मूर्ति अत्यंत दिव्य है। उसकी मुस्कान इतनी सुंदर है कि उसे देखते ही शरीर में नई स्फूर्ति का समावेश हो जाता है। भारत माँ के मुख पर मीठी-सी मुस्कान देखकर उसके हृदय में भी नई स्फूर्ति का संचार होगा।

(ग) 'जगा जाती है, न्यारी स्फूर्ति' -- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: भारत माँ की अलौकिक और दिव्य मूर्ति पर मीठी-सी मुस्कान को देखकर कवयित्री के शरीर में एक नई स्फूर्ति का समावेश हो जाता है।

(घ) उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।

उत्तर: कवयित्री भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में अपना योगदान देने को तत्पर है, उसकी इच्छा है कि भारत शीघ्रता से विदेशी शासन से मुक्त हो और वह भारत माँ को मुस्कुराते हुए देख सके। भारत माँ के मुख पर मुसकान देखकर उसे भी नई स्फूर्ति प्राप्त होगी, उसमें नया जोश एवं नई उमंग आ जाएगी।

(v) कलेजा माँ का, मैं संतान
      करेगा दोषों पर अभिमान।
      मातृ-वेदी पर हुई पुकार,
      चढ़ा दो मुझको, हे भगवान ।। 
                         सुनूँगी माता की आवाज़ 
                         रहूँगी मरने को तैयार। 
                         कभी भी उस वेदी पर देव, 
                         न होने दूँगी अत्याचार ।।
      न होने दूँगी अत्याचार
      चलो, मैं हो जाऊँ बलिदान।
      मातृ-मंदिर में हुई पुकार,
      चढ़ा दो मुझको, हे भगवान ।।

(क) उपर्युक्त पंक्तियों में 'माँ' की किस विशेषता का उल्लेख किया गया है और क्यों ?

उत्तर: कवयित्री कहती है कि माता के हृदय में अपनी संतान के प्रति ममता, स्नेह तथा वात्सल्य के भाव भरे होते हैं। माँ के हृदय की यह विशेषता होती है कि वह अपने बच्चों के दोषों को क्षमा कर देती है। अपने बच्चे के दोषों को देखकर भी उसके हृदय में बच्चों के लिए प्यार कम नहीं होता, बल्कि संतान के प्रति गर्व का भाव होता है।

(ख) 'मातृ-वेदी पर हुई पुकार' -- का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : मातृ-वेदी अर्थात् मातृभूमि पर पुकार हुई है, इसलिए कवयित्री अपना बलिदान देना चाहती है और भारत माँ को पराधीनता से मुक्त करना चाहती है।

(ग) कौन किस पर तथा किस प्रकार अत्याचार कर रहा था ? अत्याचार के विरोध में कवयित्री अपनी क्या इच्छा व्यक्त करती है ?

उत्तर : मातृभूमि पर विदेशी शासक अत्याचार कर रहे हैं। ये शासक अत्यंत शक्तिशाली हैं, जिनसे टक्कर लेना आसान नहीं है. फिर भी कवयित्री उनसे टकराने का संकल्प करती है। कवयित्री की इच्छा है कि वह मातृ-वेदी पर कभी अत्याचार नहीं होने देगी। इन अत्याचारों को रोकने के लिए यदि उसे अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े, तो वह सहर्ष ऐसा करेगी। वह भगवान से प्रार्थना करती है कि वह उसे मातृ- मंदिर की पुकार पर आत्मोत्सर्ग करने की शक्ति प्रदान करे।

(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवयित्री क्या प्रेरणा दे रही है ?

उत्तर : उपर्युक्त पंक्तियों में कवयित्री ने माँ के स्वभाव की विशेषताओं की चर्चा करते हुए कहा है कि माता कभी कुमाता नहीं होती। वह अपनी संतान के दोषों को भी अनदेखा कर देती है। कवयित्री की इच्छा है कि वह अपनी मातृभूमि पर होने वाले अत्याचारों को देखकर चुप नहीं बैठेगी और किसी प्रकार के अत्याचार नहीं होने देगी। अत्याचारों को रोकने के लिए वह अपने प्राणों का बलिदान करने को भी तत्पर है।

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