अवतरणों पर आधारित प्रश्न
(i) धर्मराज यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी है
नहीं क्रीत है दासी है
जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए
सबको मुक्त समीरण
बाधा रहित विकास, मुक्त
आशंकाओं से जीवन।
(क) कौन किसे उपदेश दे रहा है? वक्ता ने उसे धर्मराज क्यों कहा है? उसने भूमि और भूमि पर बसने वाले मनुष्यों के संबंध में क्या कहा है?
उत्तर: भीष्म पितामह जी युधिष्ठिर को उपदेश दे रहे हैं। भीष्म पितामह ने उन्हें धर्मराज इसलिए कहा क्योंकि वे धर्मपरायण थे, धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने भूमि को 'क्रीत- दासी' कहा क्योंकि भूमि किसी की खरीदी गई दासी नहीं है। इस पर सबका समान रूप से अधिकार है। इस भूमि पर रहने वाले सभी मनुष्यों का इस पर समान रूप से अधिकार है।
(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में 'भूमि' के संबंध में क्या कहा गया है तथा क्यों ?
उत्तर: उपर्युक्त पंक्तियों में भूमि के लिए 'क्रीत-दासी' शब्द का प्रयोग किया गया है क्योंकि उनके अनुसार भूमि किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है। इस पर रहने वाले सभी मनुष्यों का इस पर समान रूप से अधिकार है।
(ग) कवि के अनुसार मानवता के विकास के लिए क्या-क्या आवश्यक है?
उत्तर: इस संसार में मानवता के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सभी मनुष्यों को प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुएँ समान रूप से मिलती रहें। सभी को मुक्त रूप से प्रकाश और खुली हवा मिले। सभी लोग प्रकृति के निःशुल्क उपहारों का स्वेच्छा से एवं स्वतंत्रता से उपभोग कर सकें।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि क्या संदेश दे रहा है ?
उत्तर: उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि यह संदेश दे रहा है कि इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले सभी लोग समान हैं। उन सभी को प्रकृति के तत्त्व समान रूप से मिलने चाहिए। इस पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी लोगों का यह अधिकार है कि उनका विकास हो, उन्हें किसी प्रकार की चिंता, आशंका या भय का सामना न करना पड़े क्योंकि यह धरती, आकाश, धूप, हवा सबके लिए है और उन पर सभी का समान रूप से अधिकार है।
(ii) लेकिन विघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहाँ धरती पर तब तक
शांति कहाँ इस भव को ?
(क) 'लेकिन विघ्न अनेक अभी इस पथ पर अड़े हुए हैं'- कवि किस पथ की बात कर रहा है? उस पथ में कौन-कौन-सी बाधाएँ हैं ?
उत्तर : कवि मानवता के पथ की बात कर रहा हैं। उस मानवता के मार्ग में अनेक प्रकार की समस्याएँ, कठिनाइयाँ और बाधाएँ हैं। ये समस्याएँ हैं कि लोगों को प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुएँ समान रूप से नहीं मिलतीं, वे लोग प्रकृति के निःशुल्क उपहारों का स्वेच्छा व स्वतंत्रता से उपभोग नहीं कर सकते।
(ख) धरती पर चैन और शांति लाने के लिए क्या आवश्यक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस संसार में चैन व शांति लाने के लिए यह आवश्यक है कि सभी मनुष्यों को प्रकृत्ति द्वारा प्रदत्त वस्तुएँ समान रूप से मिलती रहें अर्थात् सभी व्यक्ति प्रकृति के उन उपहारों का स्वतंत्रता से उपभोग कर सकें। जब तक निवासियों को न्याय के अनुसार सुख-सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होंगी, तब तक संसार में शांति स्थापित नहीं हो सकती।
(ग) उपर्युक्त पंक्तियों का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि ने संदेश दिया है कि जब तक मनुष्यों को न्याय के अनुसार अधिकारों को स्वीकार नहीं किया जाता, जब तक उन्हें वे अधिकार नहीं मिल जाते, तब तक समाज में शांति स्थापित नहीं हो सकती। समाज में शांति की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्यों के न्यायोचित अधिकार उन्हें दिए जाएँ।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब तक सभी मनुष्यों को प्रकृति के निःशुल्क उपहार संबंधी न्यायोचित सुख उपलब्ध नहीं होंगे, तब तक पृथ्वी पर शांति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
(iii) जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा
शमित न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्यर
ही शंका में, भय में
लगा हुआ केवल अपने में
और भोग-संचय में।
(क) 'शमित न होगा कोलाहल' -- कवि का संकेत किस प्रकार के कोलाहल की ओर है? यह कोलाहल किस प्रकार शांत हो सकता है?
उत्तर: कवि कहते हैं कि जब मनुष्यों को न्याय के अनुसार अधिकारों को स्वीकार नहीं किया जाता जब तक उन्हें वे अधिकार मिल नहीं जाते, तब तक कोलाहल तथा अशांति समाप्त नहीं हो सकती। कोलाहल और संघर्ष कम करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रकृति से प्राप्त उपहारों एवं वस्तुओं का सभी लोग मिल बाँटकर उपभोग करें। जब तक सभी का सुख भाग समान नहीं होगा, तब तक संघर्ष कम नहीं होगा।
(ख) आज मानव के संघर्ष का मुख्य कारण क्या है? कवि के इस संबंध में क्या विचार हैं ?
उत्तर: आज मानव के संघर्ष का मुख्य कारण है कि सभी मनुष्यों को प्रकृति के सभी साधन समान रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। कवि के अनुसार जब तक समानता के आधार पर सबको समान अधिकार नहीं
दिए जाएँगे, तब तक संघर्ष की समाप्ति नहीं होगी।
(ग) कवि के अनुसार आज का मनुष्य कौन-सी बात भूल गया है तथा वह किस प्रवृत्ति में फँस गया है?
उत्तर: आज का मनुष्य यह भूल गया है कि संसार में संघर्ष एवं कोलाहल का कारण है-- मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव तथा सभी के सुख भाग का समान नहीं होना। मानव इस बात को भुलाकर आपसी शंका एवं भय के वातावरण में जीवन-यापन कर रहा है। वह केवल अपने लिए ही जीता है, उसे दूसरों के सुख और सुविधाओं की कोई चिंता नहीं रही है।
(घ) 'लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में' -- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि सभी मनुष्य स्वार्थी होकर अपने लिए ही जी रहे हैं तथा अपने लिए ही वस्तुओं का संग्रह कर रहे हैं, यही कारण है कि संदेह तथा भय का वातावरण बना रहता है।
(iv) प्रभु के दिए हुए सुख इतने
हैं विकीर्ण धरती पर
भोग सकें जो उन्हें जगत में,
कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं।
(क) 'प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर' -- पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: कवि कह रहे हैं कि इस पृथ्वी पर भगवान के दिए हुए सुख के साधन इतनी अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं कि उनसे सभी मनुष्यों की सभी आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकती हैं।
(ख) 'कहाँ अभी इतने नर' -- पंक्ति द्वारा कवि क्या समझाना चाहता है और क्यों ?
उत्तर: इस पंक्ति द्वारा कवि यह समझाना चाहते हैं कि इस धरती पर भोग सामग्री का जितना विस्तार है, अभी उसका उपभोग करने वाले उतने मनुष्य नहीं हैं। यदि कुछ लोग केवल अपने लिए संचय करने की अपनी दुष्प्रवृत्ति का त्याग कर दें, तो सबके भोगने के बाद भी खाद्य-सामग्री तथा अन्य पदार्थ बचे रह सकेंगे।
(ग) उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस धरती पर भोग सामग्री का बहुत अधिक विस्तार है तथा उपलब्ध भोग-सामग्री की तुलना में उसका उपभोग करने वाले मनुष्यों की संख्या बहुत कम है। यदि कुछ लोग स्वार्थवश अपने लिए संचय करने की प्रवृत्ति को त्याग दें, तो सभी संतुष्ट हो सकते हैं और इस पृथ्वी को स्वर्ग बनाया जा सकता है।
(घ) कवि के अनुसार इस पृथ्वी को स्वर्ग किस प्रकार बनाया जा सकता है?
उत्तर: यदि कुछ लोग केवल अपने लिए संचय करने की दुष्प्रवृत्ति का त्याग कर दें, तो सबके भोगने के बाद भी खाद्य-सामग्री तथा अन्य पदार्थ बचे रह जाएँगे। ऐसी स्थिति में सब लोग संतुष्ट हो सकते हैं तथा समान रूप से सुख पा सकते हैं। यदि ऐसा हो गया तो पलभर में इस धरती को स्वर्ग के समान बनाया जा सकता है अर्थात् फिर धरती पर वे सब सुख होंगे, जो स्वर्ग में उपलब्ध होते हैं।